नक्सल प्रभावित 130 से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां बिजली नहीं पहुंची

 नक्सल प्रभावित  130 से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां बिजली नहीं पहुंची
महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित गढ़ चिरौली जिले से लगे मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में नक्सली अपना आधार फिर से मजबूत कर रहे हैं। 

बालाघाट जिले में पिछले 20 सालों में नक्सलियों द्वारा अलग-अलग क्षेत्रों में की गई वारदातों में 81 लोगों की मौत हुई है। वहीं पुलिस मुठभेड़ में 14 नक्सली मारे गए हैं, जबकि 111 नक्सली गिरफ्तार हुए हैं।  


मध्‍यप्रदेश का बालाघाट जिला पिछले दो दशक से नक्सलवाद समस्या से प्रभावित है। प्रशासन को यहां के आदिवासी अंचलों में जाकर वहां रहने वाले लोगों के दुख-दर्द और समस्याओं को करीब से देखने का जो प्रयास करना चाहिए था, वह नहीं हो पा रहा है। जिले में विकास का सारा तामझाम शहरी क्षेत्रों के आसपास लालबर्रा-वारासिवनी-कटंगी-बैहर-लांजी-किरनापुर आदि के आसपास सिमटकर रह गया है।

यह तथ्‍य हैरान करने वाला है कि आजादी के छह दशक बीत जाने के बाद भी बालाघाट जिले में 130 से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां बिजली नहीं पहुंची है। इन गांवों में उमरधौनी, कोठियाटोला, असरमा, नीला, कुन्दुल, भोरझिरिया, चिखलाझोड़ी, हर्रानाला, जानियाटोला, बालाटोला, पंडारपानी, जड़ोड़का, दुगलई, आमानाला, डोंगरिया, बंजारी, बोदलबहरा, कावेली, माटे, कटेझिरिया, कुवागोंदी, कुलपा, चालिसबोडी, पालागोंदी, सर्रा, कोरका, कसंगी, कोद्दापार, कुराझोडी, कोंदुल, सुन्दरवाही, राशिमेटा, मुयम, अधियाबरन, एक्को, बटरंगा, जामटोला, दुल्हापुर, खारा, कोकमा, पोलबत्तुर, बंधनिया, सरईपतेरा, देवगांव, हथवंद, भूतना, बिठली, रनवाही, सुकडी, जामी, अजानपुर, पौनी, भोंगाद्वार, जगला, पिपरही, झाको, गोला, बोदलखा, आदि कई और गावं शामिल हैं।

इसी प्रकार से कुछ क्षेत्र ऐसे है, जहां सडक निर्माण की अत्यंत आवश्यकता है। इन इलाकों में लामता एवं चरेगांव से बडगांव (25 किलामीटर), चरेगांव से चाचेरी (10 किमी), परसवाडा से चाचेरी (2 किमी), पौनी से कण्डईविया छिंदीटोला (10 किमी), समनापुर से डोंगरबोडी (2 किमी), आमगांव से सोनपुरी (4 किमी), आमगांव से उमरदोहनी वाया पंचेरा (6 किमी), किन्ही से बेलगांव वाया कण्डरा कलकत्ता बत्तम (20 किमी), एवं किन्ही से कोडबर्रा (4 किमी), आदि शामिल हैं।

ये ऐसे गांव हैं, जो मुख्य धारा से कटे हुए है। यहां आवागमन हेतु पर्याप्‍त सडके नहीं हैं। इस संबंध में प्रस्ताव शासन को भेजे गए, पर ना जाने वे फाईलें कहां दबी पडी है। इतना ही नहीं, नक्सल प्रभावित कुछ क्षेत्रों की सडकें स्वीकृत की गईं, लेकिन उन क्षेत्रों में कोई ठेकेदार काम करने का तैयार नहीं है। इन इलाकों में प्रमुख हैं- अडोरी-रंजना रोड (8 किमी), सोनगुड्डा-सुन्दरवाही (4 किमी), पिपलगांव-पौनी रोड (7 किमी), बोदलबोहरा-कसंगी (4 किमी), रिसेवाड़ा-सीतेपाला (22 किमी), घोटी-सुलसुली (4 किमी), चालीसबोडी-बिठली रोड (15 किमी), इन सड़कों पर अभी तक काम शुरू नहीं हो पाया है।

बालाघाट जिले के बैहर-परसवाडा-लांजी के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आज भी ऐसे कई गांव है, जहां न तो प्रशासन अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाया है, न ही क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने इन क्षेत्रों के विकास में कोई रूचि दिखाई है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, आवागमन जैसी जरूरी सुविधाओं से वंचित इन क्षेत्रों के विकास की तरफ प्रशासन को गंभीरतपूर्वक ध्यान देना होगा, तभी नक्सलवाद जैसी समस्याओं से हम पार पा सकते हैं, अन्यथा नक्सलवाद का प्रभाव बढ़ता जायेगा।

इन पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के दुख-दर्द को समझने की कोई कोशिश ही नहीं करता और ऐसी जगहों पर जाकर नक्सलवादी उनके हमदर्द बनकर जो कुछ भी उनके लिए संभव होता है, अपनी सेवाएं देते हैं। इसके चलते ही ऐसे इलाकों में रहने वाले लोगों की नजर में प्रशासन खलनायक व नक्सली नायक बनकर उभरे हैं। अब भी समय है, राज्य सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विकास के प्रति ईमानदारी के साथ प्रयास करे, तो इसके सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं। समय निकल जाने के बाद स्थिति और भयावह हो जाएगी, जिस पर काबू पाना मुश्किल हो जाएगा।

Comments

Popular posts from this blog

ग्रामोजन फाउंडेशन की स्थापना